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PAYAL BOOKS

Has Parihas By Shiv Shankar Goel हास-परिहास

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Has Parihas By Shiv Shankar Goel हास-परिहास

व्यंग्य के विषय में प्रसिध्द व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का कहना था कि व्यंग्य लेखन एक गंभीर कर्म हैं. सच्चा व्यंग्य जीवन की समीक्षा होता है. मार्क ट्वेन (प्रसिध्द व्यंग्यकार ) ने लिखा है – यदि कोई भूखे कुत्ते को रोटी खिलाए, तो वह उसे काटेगा नही, मनुष्य और कुत्ते में यही खास फर्क हैं. इस कथन से हंसी नही आती, पर व्यंग्य की यह करारी चोट चेतना पर पडती हैं. मधुरिमा की सम्पादक रचना समंदर ने परिहास विशेषांक में लिखा है हंसाना कला है, तो हंसना भी कम नही है. हास्य रचना इसलिए लेखन की सबसे कठिन विधा मानी जाती हैं. खुद पर हंस पाना हास्य की पहली शर्त हैं. प्रसिध्द कवि श्री महेश दुबे का कहना है कि हंसने वाले स्वर्ग नही जाते हैं, वे जहां होते है वही स्वर्ग बनाते हैं.
राजस्थान में नाचनै ( नृत्य और स्थान )के महत्व को देखते हुए आवरण के लिए नाचनै टाईटल का चयन किया गया हैं. काका हाथरसी ने अपने लेख “हास्य-व्यंग्य जीवन के अंग” में लिखा है “हास्य और व्य़ंग्य एक ही गाडी के दो पहियें हैं. हास्य के बिना व्यंग्य में मजा नही और व्यंग्य के बिना हास्य में स्वाद नही आता. दोनों बराबर एक-दूसरे का साथ दें तभी जन-गण-मन की मनोरंजनी गाडी ठीक से चलती हैं.” प्रस्तुत पुस्तक में हास्य और व्यंग्य की गाडी के दोनों पहिये लगाने की कोशिश की है.
मैंने इस क्षेत्र में लिखने का जो प्रयास किया है वह सबका सब गद्य में ही हैं क्योंकि, अजमेर में, कवि गोष्ठियों में आदरणीय श्री भागवत प्रशाद शर्मा “प्रमोद” जी से अकसर ही यह युक्ति सुना करते थे जब खोजे(जेब) में हो वित्त, खुश हो चित्त, राज हो मित्त तब हो कवित्त. कहने का मतलब यह कि इतनी सारी बातें कभी एक साथ नसीब हुई नही और पद्य लिखा नही गया. आपसे क्या छिपाना कभी-कभार कोई मामूली सी तांक-झांक करली तो वह और बात हैं.
हास्य-व्यंग्य की श्रंखला में पहली पुस्तक “आपबीती-जगबीती” डायमंड प्रकाशन, दिल्ली से सन 2009 में प्रकाशित हुई. दूसरी, “अजमेर और हास्य” और अब यह तीसरी पुस्तक “हास-परिहास” आपकी सेवा में प्रस्तुत है.